आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि ट्रांस महिलाएं कानूनी रूप से महिलाएं हैं और उन्हें भारत के कानून के तहत महिला के रूप में मान्यता पाने का पूरा अधिकार है। इस फैसले को भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए एक बड़ी जीत माना जा रहा है।
यह मामला 2022 में उस समय सामने आया जब ट्रांस महिला पोकला शबाना ने अपने ससुराल वालों से कथित प्रताड़ना के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के तहत संरक्षण की मांग की थी। शबाना के पति के परिजनों ने अदालत में याचिका दाखिल कर दावा किया कि यह धारा केवल “जैविक महिलाओं” पर लागू होती है और ट्रांस महिलाएं इसका लाभ नहीं ले सकतीं क्योंकि वे गर्भधारण नहीं कर सकतीं।
मगर न्यायमूर्ति वेंकटा ज्योतिर्मयी प्रतापा ने इन दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि महिला होने की परिभाषा को केवल गर्भधारण करने की क्षमता से जोड़ना न केवल संविधान के खिलाफ है, बल्कि यह “कानूनी रूप से अवैध और असंवेदनशील” भी है।
अपने फैसले में उन्होंने कहा, “एक ट्रांस महिला, जो पुरुष रूप में जन्मी और बाद में महिला में संक्रमण कर चुकी है, उसे महिला के रूप में कानूनी मान्यता मिलनी चाहिए। उसकी स्त्रीत्व को नकारना भेदभाव के समान है।”
न्यायमूर्ति प्रतापा ने संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 15 (भेदभाव से संरक्षण) और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का हवाला देते हुए कहा कि इन प्रावधानों के तहत ट्रांस महिलाओं को अन्य महिलाओं की तरह कानूनी सुरक्षा प्राप्त है। उन्होंने 2014 में भारत के सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए उस ऐतिहासिक फैसले का भी उल्लेख किया, जिसमें “तीसरे लिंग” को कानूनी मान्यता दी गई थी।
सामाजिक प्रतिक्रिया और LGBTQ+ अधिकारों की दिशा में उम्मीद
ट्रांसजेंडर अधिकार कार्यकर्ता और कलाकार कल्कि सुब्रमण्यम ने इस निर्णय पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “यह फैसला हमारे बुनियादी मानवाधिकारों को स्वीकार करता है। हम जैसे लोग खुद को जिस रूप में पहचानते हैं, उसमें कानूनी मान्यता मिलना हमारे अस्तित्व की पुष्टि है।”
उन्होंने आगे कहा, “ट्रांस महिलाओं के लिए यह निर्णय बहुत मायने रखता है। यह हमारे संघर्ष, अस्मिता और सम्मान की दिशा में एक निर्णायक कदम है।”
हालांकि, भारत में LGBTQ+ अधिकारों को लेकर अभी लंबा रास्ता तय करना बाकी है। समलैंगिक विवाह को अब भी भारत में कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं है। नरेंद्र मोदी सरकार ने 2023 में सुप्रीम कोर्ट में दायर एक शपथपत्र में समलैंगिक विवाह को “अभिजात वर्ग की सोच” करार दिया था और कहा था कि विवाह केवल “जैविक पुरुष और महिला” के बीच वैध है।
फैसले का व्यापक प्रभाव
यह फैसला न केवल शबाना के व्यक्तिगत मामले में न्याय का रास्ता खोलेगा, बल्कि लाखों ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए कानूनी प्रणाली में एक नई राह भी बनाएगा। यह न्यायपालिका द्वारा यह संदेश भी देता है कि लिंग पहचान को सिर्फ शारीरिक लक्षणों तक सीमित नहीं किया जा सकता, बल्कि यह व्यक्ति की पहचान और गरिमा से जुड़ा मामला है।