UK सुप्रीम कोर्ट का फैसला: ट्रांस महिलाएं ‘महिला’ की कानूनी परिभाषा में शामिल नहीं

ब्रिटेन की सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट किया है कि ट्रांस महिलाएं—even वे जिनके पास Gender Recognition Certificate (GRC) है—Equality Act 2010 की धारा 11 में दी गई “महिला” की परिभाषा में नहीं आतीं। कोर्ट ने कहा कि इस कानून में “sex” यानी “लैंगिकता” केवल जैविक (biological) लिंग को दर्शाता है, न कि लिंग पहचान (gender identity) को।

कोर्ट ने क्या कहा?

16 अप्रैल 2025 को दिए गए फैसले में पांच न्यायाधीशों की पीठ—लॉर्ड रीड (अध्यक्ष), लॉर्ड हॉज (उपाध्यक्ष), लॉर्ड लॉयड-जोन्स, लेडी रोज़ और लेडी सिम्लर—ने कहा:

“स्कॉटिश सरकार द्वारा जारी की गई गाइडेंस गलत है। एक ट्रांस महिला, जिसे GRC मिला हो, वह Equality Act 2010 की धारा 11 के अंतर्गत ‘महिला’ नहीं मानी जा सकती।”

इसका सीधा असर यह है कि 2018 के Gender Representation on Public Boards (Scotland) Act की धारा 2 में “महिला” की परिभाषा केवल जैविक महिलाओं तक सीमित रहेगी। यह व्याख्या स्कॉटिश संसद के अधिकार क्षेत्र में आती है और Scotland Act के तहत आरक्षित विषयों (reserved matters) में हस्तक्षेप नहीं करती।

मामला कैसे शुरू हुआ?

यह याचिका For Women Scotland Ltd, एक नारीवादी संस्था, द्वारा दायर की गई थी। उन्होंने अप्रैल 2022 में स्कॉटिश मंत्रियों द्वारा जारी गाइडेंस को चुनौती दी थी, जिसमें कहा गया था कि GRC प्राप्त ट्रांस महिलाओं को “महिला” की श्रेणी में गिना जा सकता है।

Gender Recognition Act 2004 की धारा 9(1) के अनुसार, GRC मिलने के बाद किसी व्यक्ति का लिंग “हर उद्देश्य के लिए” बदला हुआ माना जाता है। इस आधार पर स्कॉटिश सरकार ने ट्रांस महिलाओं को सार्वजनिक बोर्डों पर महिलाओं की संख्या बढ़ाने के लक्ष्य में शामिल किया था।

हालांकि, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यह व्याख्या Scotland Act 1998 में “equal opportunities” जैसी आरक्षित श्रेणी की परिभाषा को अनुचित रूप से बदल देती है।

कोर्ट का निष्कर्ष

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि:

  • Equality Act 2010 में “sex” और “woman” जैविक अर्थ में लिए जाने चाहिएं।
  • GRC मिलने से भले ही व्यक्ति की कानूनी पहचान बदल जाए, लेकिन यह कानून में “महिला” की मूल परिभाषा को नहीं बदलता।
  • ट्रांस लोगों की भागीदारी महत्वपूर्ण है, लेकिन किसी ट्रांस महिला की नियुक्ति को महिलाओं की 50% प्रतिनिधित्व के लक्ष्य की पूर्ति नहीं माना जा सकता।

कोर्ट की संवेदनशील टिप्पणी

“इस फैसले का उद्देश्य ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की नियुक्तियों को हतोत्साहित करना नहीं है। कई सार्वजनिक बोर्डों में उनके दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व भी उतना ही जरूरी है। यह मुद्दा केवल इतना है कि क्या GRC प्राप्त ट्रांस महिला को ‘महिला’ की नियुक्ति माना जाए या नहीं—हमारा उत्तर है: नहीं।”

यह फैसला न केवल कानून की व्याख्या को स्पष्ट करता है, बल्कि लिंग और समानता के मुद्दों पर चल रही बहस में एक नया कानूनी दृष्टिकोण भी प्रस्तुत करता है।

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