दहेज प्रथा पर छह दशक पहले प्रतिबंध लग जाने के बावजूद मध्य प्रदेश में दहेज उत्पीड़न के कारण महिलाओं की मौत का सिलसिला थम नहीं रहा है। सरकारी आँकड़े बताते हैं कि राज्य में हर दिन औसतन एक महिला की मौत दहेज के कारण हो रही है। बीते 18 महीनों में 719 दहेज मौतों के मामले दर्ज हुए हैं।
ये चिंताजनक आँकड़े 29 जुलाई को राज्य विधानसभा में प्रस्तुत किए गए, जिसने मध्य प्रदेश को उन राज्यों में शामिल कर दिया है जहाँ दहेज संबंधी अपराध लगातार बढ़ रहे हैं।
सरकारी डेटा के मुताबिक:
- 15 से 31 दिसंबर 2023 के बीच — नई बीजेपी सरकार बनने के तुरंत बाद 21 दहेज मौतें दर्ज की गईं।
- पूरा वर्ष 2024 — यह संख्या बढ़कर 459 मौतों तक पहुँच गई।
- जनवरी से जून 2025 — केवल छह महीनों में ही 239 महिलाएँ दहेज की बलि चढ़ गईं।
यह लिखित जानकारी मुख्यमंत्री मोहन यादव (जो गृह विभाग भी संभालते हैं) ने कांग्रेस विधायक आतिफ अरिफ़ अकील के सवाल के जवाब में दी।
इन आँकड़ों का खुलासा ऐसे समय हुआ है जब देशभर में दहेज हिंसा पर आक्रोश फैला हुआ है। हाल ही में 21 अगस्त को ग्रेटर नोएडा में 28 वर्षीय निकी भाटी को दहेज की माँग पूरी न करने पर ज़िंदा जला दिया गया, जिससे पूरे देश में गुस्सा और आक्रोश फैल गया।
भारतीय कानून के तहत, दहेज मृत्यु उस स्थिति को कहा जाता है जब विवाह के सात वर्षों के भीतर किसी महिला की असामान्य परिस्थितियों (जलना, चोट या अन्य अप्राकृतिक कारण) से मौत हो और यह साबित हो कि उसे पति या ससुराल वालों द्वारा दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया था। दोषी पाए जाने पर न्यूनतम सात साल की सज़ा और आजीवन कारावास तक का प्रावधान है।
आँकड़े एक भयावह सच्चाई उजागर करते हैं — दहेज हत्याएँ घटने के बजाय बढ़ रही हैं, जिससे साफ है कि यह कुप्रथा समाज में गहराई तक जमी हुई है, भले ही दहेज निषेध अधिनियम बने हुए कई दशक बीत गए हों।