कार्य तनाव से महिलाओं का हृदय स्वास्थ्य खतरे में: जागरूकता और समाधान की ज़रूरत

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, हर साल विश्वभर में 89 लाख महिलाओं की मृत्यु हृदय रोगों के कारण होती है, जो महिलाओं की कुल मृत्यु दर का 35% है। यह आंकड़ा न केवल चौंकाने वाला है बल्कि यह भी दर्शाता है कि महिलाओं में हृदय स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता और समझ अभी भी बेहद सीमित है।

विशेषज्ञों का कहना है कि कार्यस्थल का तनाव, खासकर महिलाओं में, हृदय संबंधी बीमारियों का एक बड़ा और अक्सर अनदेखा कारण बनता जा रहा है। आमतौर पर हृदय रोगों से जुड़ी वजहों में जीवनशैली और आनुवंशिकी को गिना जाता है, लेकिन महिलाओं में कार्य-संबंधी पुराना तनाव भी एक महत्वपूर्ण कारक है, जो चिंता का विषय है।

घटती जागरूकता, बढ़ता जोखिम

2009 में जहाँ 65% महिलाओं को यह जानकारी थी कि हृदय रोग महिलाओं की मौत का प्रमुख कारण है, वहीं 2021 में अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के एक अध्ययन में यह जागरूकता घटकर मात्र 44% रह गई — यानी 21% की गिरावट! यह दर्शाता है कि जागरूकता के अभाव में महिलाएँ खुद को जोखिम में डाल रही हैं।

“दोहरी पारी” का दबाव

आधुनिक महिलाएँ एक साथ कई भूमिकाएँ निभा रही हैं — वे पेशेवर जिम्मेदारियाँ निभाने के साथ-साथ घर की देखभाल और पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन भी करती हैं। यह लगातार चलने वाला तनाव कोर्टिसोल (तनाव हार्मोन) के स्तर को बढ़ाता है, जिससे इंसुलिन प्रतिरोध, उच्च रक्तचाप और सूजन जैसी स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं — ये सभी हृदय रोग की दिशा में अग्रसर करती हैं।

2021 में जर्नल ऑफ द अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, जो महिलाएँ कार्य और सामाजिक तनाव का उच्च स्तर अनुभव करती हैं, उनमें हृदय रोग विकसित होने की संभावना 21% अधिक होती है। इसके साथ ही, तनाव मेटाबोलिक सिंड्रोम के खतरे को भी बढ़ाता है — एक ऐसी स्थिति जिसमें मोटापा, उच्च रक्तचाप, शर्करा असंतुलन और लिपिड विकार शामिल होते हैं।

लक्षणों को पहचानना भी चुनौती

महिलाओं में हृदय रोग के लक्षण पारंपरिक नहीं होते — थकान, बेचैनी, अपच, और सांस की तकलीफ जैसे सामान्य लक्षण भी हृदय रोग का संकेत हो सकते हैं, जिससे अक्सर गलत निदान की संभावना बनी रहती है।

समाधान की राह: जागरूकता और नीतिगत परिवर्तन

विशेषज्ञों के अनुसार, हृदय स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए केवल व्यक्तिगत प्रयास नहीं, बल्कि संस्थागत सहयोग भी जरूरी है। कुछ प्रमुख सुझाव:

  • नियमित स्वास्थ्य जांच: बीएमआई, ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर और लिपिड प्रोफाइल की निगरानी।
  • तनाव प्रबंधन: योग, माइंडफुलनेस, पर्याप्त नींद और structured work-rest balance।
  • व्यायाम और आहार: हर सप्ताह कम से कम 150 मिनट की मध्यम-तीव्रता वाली एक्सरसाइज और फाइबर व एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर आहार।
  • मानसिक स्वास्थ्य: अवसाद से जूझ रही महिलाओं में हृदय रोग का खतरा दोगुना होता है, ऐसे में मनोवैज्ञानिक सहायता अनिवार्य है।

कार्यस्थलों की भूमिका

संगठनों को चाहिए कि वे महिलाओं के स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें और उन्हें सहयोगी वातावरण प्रदान करें:

  1. सहायता-संवेदनशील संस्कृति विकसित करें जहाँ महिलाएँ खुलकर बात कर सकें।
  2. लचीले काम के विकल्प और प्रबंधनीय कार्यभार सुनिश्चित करें।
  3. मानसिक स्वास्थ्य और तनाव प्रबंधन कार्यक्रम लागू करें।
  4. प्रशिक्षित प्रबंधक, जो तनाव के लक्षण पहचान सकें और समय पर हस्तक्षेप करें।
  5. डेटा-आधारित हस्तक्षेप से उच्च जोखिम वाली महिलाओं की पहचान और मदद।

निष्कर्ष

महिलाओं का दिल आधुनिक जीवनशैली और कार्य तनाव की भारी कीमत चुका रहा है। यह समय है जब समाज, संस्थाएँ और स्वयं महिलाएँ, मिलकर हृदय स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें। सफलता का रास्ता तनाव से नहीं, बल्कि संतुलन और देखभाल से होकर गुजरता है। महिलाओं की भलाई ही सशक्त समाज की नींव है।

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