Lok sabha elections 2019: राजनीति में क्यों हाशिए पर हैं महिलाएं?


समाज में महिलाओं की स्थिति इक्कीसवीं सदी में भी दयनीय है। महिलाओं को आज भी इस लायक नहीं समझा जाता है कि वे अपना चूल्हा-चौका छोड़ घर के बाहर कदम रखें। हालांकि त्रिस्तरीय पंचायती राज निकायों में महिलाओं के लिए सीटें रिजर्व होने के कारण स्थिति में कुछ बदलाव आया है, परंतु सबसे बड़े लोकतांत्रिक संस्थान में उनकी भूमिका बहुत कम है। पिछली बार 2014 में हुए लोकसभा चुनाव को ही देखें। इस चुनाव में कुल 11 हजार 320 उम्मीदवरों ने अपना नामांकन पत्र भरा। इनमें पुरुष उम्मीदवारों की संख्या 10,321 थी। जबकि महिलाएं केवल 990। प्रतिशत के हिसाब से देखें तो यह केवल 8.74 फीसदी है।
2014 के लोकसभा चुनाव में 223 महिला उम्मीदवारों की संख्या इस कारण कम हो गई कि चुनाव आयोग ने नामांकन पत्र को वैध नहीं पाया। इतना ही नहीं, 99 महिलाओं ने स्क्रूटनी में सफल होने के बाद अपना नाम वापस ले लिया। इस प्रकार 2014 में चुनाव लड़ने वाले कुल उम्मीदवारों की संख्या 8251 रही, जिसमें महिलाओं की संख्या घटकर 668 रह गई।बता दें कि कुल 990 महिला उम्मीदवारों ने नामांकन पत्र भरा था। एक महत्वपूर्ण आंकड़ा यह भी कि 2014 के लोकसभा चुनाव में कुल 7000 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई। इनमें महिलाओं की संख्या 525 रही। जबकि 543 विजेताओं में महिलाओं की संख्या 61 (11.23 प्रतिशत) रही। वैसे 2014 के लोकसभा चुनाव में ही ऐसा पहली बार नहीं हुआ। इससे पहले 2009 के लोकसभा चुनाव के समय भी परिदृश्य कुछ ऐसा ही था। नामांकन पत्र जमा करनेवाले कुल उम्मीदवारों की संख्या 11,252 थी और महिलाओं की संख्या 827 (7.34 प्रतिशत) थी। 174 महिला उम्मीदवारों के नामांकन पत्र खारिज होने और 97 महिलाओं के द्वारा नामांकन पत्र वापस लिए जाने जाने के बाद चुनाव लड़ने वाली कुल महिला उम्मीदवारों की संख्या 556 थी।
वर्तमान में हो रहे लोकसभा चुनाव में यह तस्वीर बदलेगी, इसकी उम्मीद कोसों तक नहीं दिखती। फिर भी यह उम्मीद तो करनी ही चाहिए इस बार आंकड़ों में कुछ और सकारात्मक बदलाव होंगे और महिलाएं हाशिए से बाहर निकल सकेंगी.
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