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जब कहा गया विधर्मी तो महिलाओं ने दिया साथ

राधिका नागरथ स्वामी विवेकानंद की अक्सर सूर्य के साथ तुलना की जाती है। जिस तरह सूर्य अंधकार का The post जब कहा गया विधर्मी तो महिलाओं ने दिया साथ first appeared on Mahilaye.
 
जब कहा गया विधर्मी तो महिलाओं ने दिया साथ
जब कहा गया विधर्मी तो महिलाओं ने दिया साथ

राधिका नागरथ

स्‍वामी विवेकानंद की अक्सर सूर्य के साथ तुलना की जाती है। जिस तरह सूर्य अंधकार का नाश करता है, उसी तरह उन्होंने व्यक्ति की स्वयं के बारे में, निजस्वरूप के बारे में जो अज्ञानता है, उसका नाश कर, उसको अपनी अनंत संभावनाओं के प्रति जागृत किया। खुद को शरीर न मानकर और अपने आत्मस्वरूप में स्थित व्यक्ति असंभव को भी संभव कर दिखा सकता है। उनकी जर्मन शिष्या सिस्टर क्रिसटीन लिखती हैं कि स्वामी विवेकानंद के करीब आकर बहुत से पश्चिम के लोगों ने भगवान के बारे में जाना और खुद के बारे में समझा। स्वामी जी ने इन सब महिलाओं का सशक्तीकरण किया था ताकि वे भारतीय महिलाओं को भी सशक्त बना सकें। अमेरिकी स्त्रियों के स्वतंत्र विचार और भारतीय महिलाओं के मातृत्व आदर्श, इन दोनों पक्षों की स्वामी जी बारंबार प्रशंसा किया करते थे। भारत से जब खाली हाथ एक परिव्राजक के रूप में बिना किसी नाम और मददगार के स्वामी विवेकानंद अमेरिका जैसे भौतिकवादी देश में पहुंचे तो उस समय अमेरिकी महिलाओं ने ही उन्हें सहायता दी, उनके निवास और भोजन की व्यवस्था की। जब कुछ पादरियों ने ‘भयानक विधर्मी’ कहकर लोगों को उन्हें त्याग देने के लिए बाध्य किया. खेतड़ी के महाराजा को लिखे पत्र में स्वामी विवेकानंद अमेरिकी महिलाओं के विषय में इस प्रकार लिखते हैं कि अमेरिका के पारिवारिक जीवन के संबंध में मुझे उनके बारे में निरर्थक कहानियां सुनने को मिली थी। मैंने सुना था कि वहां अनर्गल सीमा तक स्वच्छंदता है, वहां की नारियों का चाल-चलन भारतीय नारियों जैसा नहीं है। स्वतंत्रता की उन्मत्तता में आकर वह अपने पारिवारिक जीवन की सुख शांति भी चूर कर देती हैं और भी इस प्रकार की बकवास सुनने में आई, किंतु अब एक वर्ष बाद अमेरिकी परिवार तथा अमेरिकी स्त्रियों के संबंध में मुझे जो कुछ अनुभव प्राप्त हुआ है, उससे यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि उक्त प्रकार की धारणाएं कितनी भ्रांत और निर्मूल है। अमेरिकी महिलाओं का शत जन्मों में भी मैं उऋण नहीं हो सकूंगा, मेरे पास उनकी कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए शब्द नहीं है। स्वामी विवेकानंद ने लिखा कि कितने ही सुंदर पारिवारिक जीवन मैंने यहां देखे हैं कितनी ही ऐसी माताओं को मैंने देखा है जिनकी निर्मल चरित्र तथा निस्वार्थ संतान स्नेह का वर्णन शब्दों द्वारा नहीं किया जा सकता, कितनी ही ऐसी कन्याओं तथा कुंवारियों को देखने का अवसर मिला है. यहां की महिलाएं सामाजिक और नागरिक कार्य का नियंत्रण करती हैं, विद्यालय महिलाओं से भरे हैं और हमारे देश में महिलाओं के लिए राह चलना भी निरापद नहीं। जब तक हमारे देश में महिलाओं की दशा का सुधार नहीं होगा, तब तक हमारा देश उन्नत नहीं हो सकता। एक बार अपने संबोधन में स्वामी विवेकानंद ने कहा कि भारत का अधोपतन उसी समय से हुआ जब पंडितों ने ब्राह्मनोत्तर जातियों को वेद पाठ का अनाधिकारी घोषित किया, साथ ही स्त्रियों के सभी अधिकार छीन लिए, नहीं तो वैदिक युग में मैथिली, गार्गी आदि स्त्रियां ब्रह्म विचार में ऋषि तुल्य और प्रात: स्मरणीय हो गई थीं। हजारों वेदज्ञा ब्राह्मणों की सभा में गार्गी ने गर्व के साथ याज्ञवल्क्य को ब्रह्म ज्ञान पर शास्त्रार्थ करने के लिए चुनौती दी थी कि एक बार जो हुआ वह पुन: संभव है। 

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